tag:blogger.com,1999:blog-4403966880984468290.post3910326655017767949..comments2024-01-18T07:01:10.043-08:00Comments on my diary: DOE admission criteria circular dated 28/05/2012 uncontitutionalAdv. Ashok Agarwalhttp://www.blogger.com/profile/01652382493000903864noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-4403966880984468290.post-73174793478199571672012-07-10T03:17:17.611-07:002012-07-10T03:17:17.611-07:00बचपन में सुनते आये थे की बच्चे राष्ट्र की धरोवर ओर...बचपन में सुनते आये थे की बच्चे राष्ट्र की धरोवर ओर ये हे राष्ट्र के भावी भविष्य होते हैं ये राष्ट्र के निर्माता होते हैं. क्योंकि इन में से ही कोनसा ऐसा नोनिहाल निकल आये जो कल को देश का राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, मंत्री, बने ओर देश का नेतृत्व करे. यही बच्चे बड़े होकर कोई सैनिक, अफसर, डाक्टर, वकील, पत्रकार, लेखक ,कलेक्टर मिनिस्ट्री में सचिव बनकर राष्ट्र की सेवा करते हैं. लेकिन आज हम बच्चो के साथ कैसा न्याय कर रहे हैं ?. मेरा बेटा विशाल शर्मा सर्वोदय विद्यालय शारदा निकेतन सरस्वती विहार दिल्ली के स्कूल में दसवी में पास हुआ उसके 72 % मार्क्स आये लेकिन मैथ में सी -१ ग्रेड आने से उसे कामर्स सब्जेक्ट नहीं मिल रहा. जबकि वो अपने बड़े भाई आकाश शर्मा जो वर्ष २००९-१० में इसी स्कूल में १२वी में प्रथम आया था की तरह सी ए करना चाहता है.. यदि एक स्टुडेंट की किसी सब्जेक्ट में प्रोफोर्मंस कम है तो क्या हम उसे उसे उसके हाल पर छोड़ दें. क्या हमारा कोई फर्ज़ नहीं बनता की हम कमजोर स्टुडेंट की मदद करके उसे अच्छे मार्क्स लाने में मदद करें. ज्यादा से ज्यादा कोईना कोई ऐसा प्रावधान भी होना चाहिए की बच्चे से लिखित में एक शपथ पत्र ले लें की यदि फस्ट टर्म में उसके मार्क्स मैथ में सही नहीं आये तो उससे कामर्स सब्जेक्ट छीन लिया जायेगा. आखिर सरकार की हम सबकी बच्चो के प्रति कुछ नैतिक जिम्मेदारी बनती होगी. क्या यही आधुनिक शिक्षा नीति है. क्या शिक्षा नीति सिर्फ सरकारी स्कूलों पर ही लागू होती हाई प्राइवेट स्कूलों पर नहीं. वहाँ तो ४८% वाले स्टुडेंट को भी कामर्स मिल रही है ओर कोई अन्य कंडीशन नहीं है <br /> क्या हमारी जिम्मेदारी सिर्फ स्डुलकास्ट, विकलांग स्टुडेंट तक ही बनती है. इस देश में करोड़ों बच्चे ऐसे हैं जो साधनहीन हैं .जिनके पास पढने के लिये किताबें कपिया नहीं हैं. वर्दी नहीं है . आर्थिक रूप से कमजोर हैं क्या उनके लिये हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती. कुछ बच्चे पढने में फिस्सडी भी हो सकते हैं क्या हम उनको आगे बढ़ने में उनकी मदद नहीं कर सकते. अगर किसी स्टुडेंट की किसी सब्जेक्ट में नम्बर कम आ गए तो क्या हमें उस पर दया , करुना नहीं दिखानी चाहिए ,उसे समझाना नहीं चाहिए,उसे आगे बढ़ने में मदद नहीं करनी चाहिए. कहीं हम बच्चो के प्रति उदारता ना दिखाकर हम उन्हें क्रूर,दयाहीन, देशद्रोही बनने पर मजबूर तो नहीं कर रहे. सवाल सिर्फ मेरे बच्चे का नहीं बल्कि लाखो ऐसे बच्चे हो सकते हैं जिनके माता पिता संपन्न नहीं हैं जो प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चो को नहीं पढ़ा सकते ओर वे शिक्षित भी नहीं हैं. वो आखिर किसका दरवाजा खटखटाएं. जबसे मेरे बेटे को पता चला है की उसे कामर्स नहीं मिलेगी तब से वो कितनी आन्तरिक पीड़ा से गुजर रहा है वो शायद शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता उसका रो रो कर बुरा हाल है. एक गलती की कितनी बड़ी सजा उसे दी जा रही है. उसे एक तरह से फांसी पर लटकाया जा रहा है . उसके करिअर के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है . में अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा नहीं सकता क्योंकि मेरी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है. दिल्ली सरकार/केंद्र सरकार की नीतिओ की वजह से लाखो विद्यार्थियो का भविष्य अंधकारमय हो चुका है. हमें बच्चो के प्रति लचीला रुख अपनाना चाहिए ना की सख्त . सरकार को अपनी शिक्षा नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए ओर ये कन्डीशन हटानी चाहिए की की फला सब्जेक्ट में इतने नम्बर होंगे तो इस सब्जेक्ट में दाखिला मिलेगा नहीं तो नहीं. जो स्टुडेंट काबिल होगा वो आगे बढेगा ओर हमें भी कमजोर की मदद करनी होगी चाहे एक्स्ट्रा क्लास लगाकर. ये हमारा राष्ट्रीय दायित्व होना चाहिए. मैंने अब कई प्राइवेट स्कूलों में ट्राई किया तो २५००-३००० से नीचे फीस नहीं है ओर २५०००-५०००० तक डोनेशन मांग रहे हैं. क्या मेरे जैसा प्राइवेट नोकरी करने वाला व्यक्ति इतना बोझ सहन कर पायेगा.<br /><br />चन्द्र प्रकाश शर्मा<br />3128 , रानी बाग़ दिल्ली -110034 <br />फोन: 9560883216 .Anonymousnoreply@blogger.com